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जब न्याय एक सपना बन जाए: एक युवा पत्रकार की लड़ाई

💼 मेरी शुरुआत

दिसंबर 2023 में मैंने बतौर सब एडिटर और पेज डिज़ाइनर एक हिंदी अखबार राष्ट्रीय खबर हमारी नजर में काम करना शुरू किया। पत्रकारिता मेरे लिए सिर्फ नौकरी नहीं, जुनून था। लेकिन इस सफर में जो हुआ, वो किसी भी युवा के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला था।

😔 न वेतन मिला, न इज्ज़त

करीब 1.5 साल तक बिना किसी छुट्टी के, मैंने समर्पण के साथ काम किया। शुरुआती वेतन ₹3000 प्रतिमाह था, जो धीरे-धीरे ₹7000 तक पहुँचा। लेकिन 2025 में जब मैंने अपना बकाया ₹18,900 माँगा, तो मुझे धमकाया गया कि नौकरी छोड़ने के लिए मुझे ₹4 लाख की ट्रेनिंग फीस देनी होगी। न कोई एग्रीमेंट, न कोई लिखित बॉन्ड — सिर्फ ज़बरदस्ती और शोषण।

📩 शिकायत का सफर

मैंने इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। प्रेस क्लब, सूचना विभाग, राज्यपाल सचिवालय, लेबर डिपार्टमेंट  तक — हर जगह मैंने सूचना दी। फिर भी आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

⚖️ मांग क्या है?

मैंने सिर्फ अपना वाजिब बकाया ₹18,900 ही नहीं, बल्कि मानसिक प्रताड़ना के लिए ₹30,000 का मुआवजा भी माँगा है। यह लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं, उन हजारों युवाओं की है जिन्हें कमज़ोर समझकर उनका शोषण किया जाता है।

📢 यह लड़ाई क्यों ज़रूरी है?

  • कोई भी संस्थान कानून से ऊपर नहीं है।
  • अगर आप चुप रहेंगे, तो अगला शिकार कोई और बनेगा।
  • यह सिस्टम तभी सुधरेगा जब हम बोलना शुरू करेंगे।

📝 आपका सहयोग जरूरी है

अगर आपने भी ऐसा कुछ झेला है, तो चुप मत रहिए। अपनी आवाज़ उठाइए। मुझे विश्वास है कि सच की जीत ज़रूर होगी।

📧 संपर्क करें: singsubham683@gmail.com

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